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Saturday 6 August 2011

ये “भैंसा” - गैंडा सा मोटा चमड़ा लिए


भीड़ इकट्ठी होती है
शोर मचाती है
ढोल पीटती है
लेकिन उसकी लाल आँखें
बड़ी सींग
अपार शक्ति देख
कोई पास नहीं फटकता
कभी कुछ शांत निडर
खड़ा हो देखता
कान उटेर सब सुनता रहता
कभी कुछ दूर भाग भी जाता

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लेकिन ये “भैंसा”
गैंडा सा मोटा चमड़ा लिए
जिस पर की लाठी -डंडे -
तक का असर नहीं
खाता जा रहा
खलिहान चरता जा रहा
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अब तो ये अकेला नहीं
“झुण्ड ” बना टिड्डी सा
यहाँ -वहां टूट पड़ता !!

( सभी फोटो गूगल/ नेट से साभार लिया गया )

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर ”
5.04 पूर्वाह्न जल पी बी
०६.०८.२०११



DE AISA AASHISH MUJHE MAA AANKHON KA TARA BAN JAOON

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