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Sunday 13 May 2012

अंगूठा चूसते-चूसते वो इतना "बड़ा" हो गया


मै ६ दिसंबर हूँ
मै ११ सितम्बर हूँ
२६ नवम्बर हूँ
आंसुओं का
महासागर हूँ मै !
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गोल-गोल
बूँद भरी
पूर्ण हो
निकल पड़ी
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अंगूठा चूसते-चूसते
वो इतना "बड़ा" हो गया
की माँ बाप का कद
इतना "बड़ा" हो गया
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पूर्णिमा की रात
आई-गई नहीं
कि  अमावस
चल पड़ा
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कल एक "लाल" चिराग ने
रोशन कर
माँ -बाप का नाम
सूरज को
दिया दिखा दिया
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एक अजनवी से
पलकें झपकते ही
दिल की
हर बात हो गयी
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आँखों का तारा
जो टूटा तो
खुद ही नहीं
उसको भी ले डूबा
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तनहाइयों ने काट-काट
अंतस के खोंडर में
घोंसला लगा लिया
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चींटियों ने
बोझ ले
चलना सिखा दिया
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प्रेम की चासनी में
मिठास ही मिठास
डूबता चला गया
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
कुल्लू यच पी
६.५.२०१२ -५.५६-६.२० पूर्वाह्न




DE AISA AASHISH MUJHE MAA AANKHON KA TARA BAN JAOON