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Monday 17 October 2011

सूखी रोटी- -भ्रमर -हिंदी कविता

सूखी रोटी- -भ्रमर -हिंदी कविता

कंधे पर बोरा (जूट का थैला )
वो टाँगे ,
शीत लहर में
सिमटा सा ,
कुछ कागज़ कुछ -
कील व् रद्दी ,
प्लास्टिक शायद
बिनता था ,
नजरें कभी उठाता -
था न . कूरे पर
बस आँखें ,
कभी हँसे कुछ -
बात करे खुद -
पागल सा गाता -
जाता . कभी किसी को -
देखे हँसता ,
दांत श्वेत
चमकाता था ,
मै भौचक्का
खड़ा देखता ,
इस हालत में
पले जिए वो ,
कैसे हँसता ??

भौं भौं कर
जब कुत्ते भूंके ,
नजर गयी उस ओर ,
कुत्ते के संग
वो लड़ता था ,
जैसे कोईचोर

छीना झपटी
किसकी खातिर
ना सोना चाँदी -
बंधी गठरी
में दिखी एक थी ,
सूखी रोटी ,
जो सोने हीरे
से बढ़कर
भूखे को -
बस होती .
८ .१५ मध्याह्न . 17.10.2011
जल (पंजाब ) सुरेंद्र शुक्ला भ्रम्रर



DE AISA AASHISH MUJHE MAA AANKHON KA TARA BAN JAOON

1 comment:

  1. जो सोने हीरे
    से बढ़कर
    भूखे को -
    बस होती .very nice.

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