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Friday 29 June 2012

कितने अच्छे लोग हमारे —————————-



कितने अच्छे लोग हमारे
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JB971949
कितने अच्छे लोग हमारे
भूखे-प्यासे -नंगे घूमें
लिए कटोरा फिरें रात-दिन
जीर्ण -शीर्ण – सपने पा जाएँ
जूठन पा भी खुश हो जाते
जीर्ण वसन से झांक -झांक कर
कोई कुमुदिनी गदरायी सी
यौवन की मदिरा छलकी सी
उन्हें कभी खुश जो कर देती
पा जाती है कुछ कौड़ी तो
शिशु जनती-पालन भी करती
(photo from google/net with thanks)


‘प्रस्तर’ करती काल – क्रूर से
लड़-भिड़ कल ‘संसार’ रचेंगे
समता होगी ममता होगी
भूख – नहीं- व्याकुलता होगी
लेकिन ‘प्रस्तर’ काल बने ये
बड़े नुकीले छाती गड़ते
आँखों में रोड़े सा चुभ – चुभ
निशि -दिन बड़ा रुलाया करते
दूर हुए महलों में बस कर
भूल गए – माँ – का बलि होना
रोना-भूखा सोना – सारा बना खिलौना
कितने अच्छे लोग हमारे
नहीं टूट पड़ते ‘महलों’ में
ये ‘दधीचि’ की हड्डी से हैं
इनकी ‘काट’ नहीं है कोई
जो ‘टिड्डी’ से टूट पड़ें तो
नहीं ‘सुरक्षित’ – बचे न कोई
नमन तुम्हे है हे ! ‘कंकालों’
पुआ – मलाई वे खाते हैं
‘जूठन’ कब तक तुम खाओगे ??
कितनी ‘व्यथा’ भरे जाओगे ??
फट जाएगी ‘छाती’ तेरी
‘दावानल’ कल फूट पड़ेगा
अभी जला लो – झुलसा लो कुछ
काहे सब कल राख करोगे ?
अश्रु गिरा कुछ अभी मना लो
प्रलय बने कल ‘काल’ बनोगे ??
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ‘५
४-४.४५ मध्याह्न
३१.५.२०१२ कुल्लू यच पी





दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं



DE AISA AASHISH MUJHE MAA AANKHON KA TARA BAN JAOON

5 comments:

  1. बहुत संवेदनशील ..ह्रदय विदारक चित्रण ...एक कटु सत्य है हमारे भारत का यह, जिसे देखकर भी अनदेखा कर आगे बढ़ रहे है हम और उसे तरक्की का नाम देते हैं .....यह सब देख यही मन में आता है क्या इसे तरक्की कहेंगे या कुछ और ..

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  2. Nice one. Thanks for sharing.


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  3. इश्वर गरीब किसी को न बनाये ,,
    गहरी संवेदना जगाती प्रस्तुति के लिए आभार..

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  4. आदरणीया कविता जी बिलकुल सच कहा आप ने प्रभु सब को कम से कम भोजन आवास वस्त्र तो दे दे
    आभार
    भ्रमर 5

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  5. आदरणीय मदन मोहन जी रचना आप के मन को छू सकी सुन हर्ष हुआ
    आभार
    भ्रमर 5

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