सूखी रोटी- -भ्रमर -हिंदी कविता
कंधे पर बोरा (जूट का थैला )
वो टाँगे ,
शीत लहर में
सिमटा सा ,
कुछ कागज़ कुछ -
कील व् रद्दी ,
प्लास्टिक शायद
बिनता था ,
नजरें कभी उठाता -
था न . कूरे पर –
बस आँखें ,
कभी हँसे कुछ -
बात करे खुद -
“पागल ” सा गाता -
जाता . कभी किसी को -
देखे हँसता ,
दांत श्वेत –
चमकाता था ,
मै भौचक्का
खड़ा देखता ,
इस हालत में
पले जिए वो ,
कैसे हँसता ??
भौं भौं कर
जब कुत्ते भूंके ,
नजर गयी उस ओर ,
कुत्ते के संग
वो लड़ता था ,
जैसे कोई ‘चोर ’
छीना झपटी
किसकी खातिर
ना सोना न चाँदी -
बंधी गठरी
में दिखी एक थी ,
सूखी रोटी ,
जो सोने हीरे
से बढ़कर
भूखे को -
बस होती .
८ .१५ मध्याह्न . 17.10.2011
जल (पंजाब ) सुरेंद्र शुक्ला भ्रम्रर
जो सोने हीरे
ReplyDeleteसे बढ़कर
भूखे को -
बस होती .very nice.